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लेखनी कहानी -16-Jan-2023 10)वो आखिरी दो साल स्कूल के( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन



शीर्षक = वो आखिरी दो साल स्कूल के




जैसा की शीर्षक से ही मालूम पड़ रहा है, कि अब स्कूल ख़त्म होने को था, स्कूल की पढ़ाई मात्र दो साल की और बची थी, यानी की ग्यारहवीं और बारहवीं उसके बाद कौन कहा किसी को नही मालूम, अब बस ये दो साल और बचे थे जिनमे पढ़ाई भी करना थी और उन दो सालों में बहुत सारी यादें भी बनाना थी, उन नये पुराने दोस्तों के साथ


इस स्कूल से हमारी ज्यादा तो नही बस कुछ यादें ही जुडी है, उस पुराने स्कूल के मुताबिक, और अब इतना समय भी नही था की खेल कूद में वक़्त जाया किया जाए, छोटी क्लास के अंक मायने नही रखते है, जितना की दसवीं और बारहवीं के रखते है, इसलिए अब ज्यादा प्रेशर पढ़ाई पर ही था, ज्यादा खेल कूद मौज मस्ती में नही


उस स्कूल का डिसिप्लिन भी अच्छा था, समय पर पढ़ाई और समय पर खेल कूद होता था, जिसके चलते ज्यादा समय नही मिलता था दोस्तों के साथ बिताने को

कुछ दिन बाद स्कूल के साथ साथ तीन तीन टूशन भी लगाना अनिवार्य हो गयी थी, जिसमे मुख्य गणित, भौतिक और रासायन विज्ञान थे, उनका सिलेबस अधिक था, सिर्फ स्कूल के आधे घंटे में कवर नही हो सकता था, इसलिए ज्यादातर बच्चें टूशन लगाए हुए थे


स्कूल से ज्यादा मस्ती टूशन में आती थी, भागते भागते स्कूल से टूशन फिर टूशन से घर फिर घर आकर देर रात तक पढ़ाई करना, बेहद मजा आता था


सुबह साइकिल से स्कूल जाना फिर साइकिल से टूशन निबटा कर घर आना, पता ही नही चला वो एक साल कैसे गुज़र गया और हम बारहवीं में आ गए

अब बस कुछ चंद महीने ही बचे थे, जिंदगी को आर या पार लगाने के, सब बच्चें मेहनती थे,

बारहवीं में हुयी एक घटना मुझे अभी भी याद है, और वो ये थी रसायन विज्ञान की लेब में हम सब बच्चें एक तरह का प्रैक्टिकल कर रहे थे, जिसमे एक घोल में कुछ रासायन मिलाकर उसे ज़ब तक हिलाना पड़ता है, ज़ब तक की उसका रंग हल्का गुलाबी ना आ जाए, हल्का गुलाबी रंग आने पर वो प्रैक्टिकल समाप्त माना जाता है,


ऐसे ही हम सब बच्चें प्रैक्टिकल कर रहे थे, अचानक एक बच्चें ने ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया " मेरा गुलाबी आ गया,, मेरा गुलाबी आ गया "

पीछे हमारे अध्यापक खड़े थे उसे इस तरह चिल्लाता देख, उसकी कनपटी पर दो रखे, सब बच्चों का हस्ते हस्ते पेट दुख गया था, ज़ब सर ने उसे पीटा और बोले " पागल हो गया क्या, गुलाबी आ गया तो चीख क्यूँ रहा है?


उस दिन से ज़ब भी उस बच्चें को देखते तो वही घटना याद आ जाती, जाड़ा, गर्मी बरसात सब को पार करते हुए, हम सब बच्चें आखिर कार उस मक़ाम पर पहुंच गए ज़ब हमारे एग्जाम नजदीक आ गए थे, प्रैक्टिकल शुरू हो गए थे, स्कूल में अब पढ़ाई भी नही हो रही थी, इसलिए सब घर पर रहकर रिवीज़न कर रहे थे


आखिर कार वो घड़ी आ गयी थी ज़ब हमारी साल भर की मेहनत को आजमाने का समय आ गया था यानी की परीक्षा, हमारा परीक्षा सेंटर नजदीक ही था ज्यादा दूर नही था, पहला पेपर हिंदी का था और उसके बाद शायद भौतिक विज्ञान और देखते देखते सारी परीक्षाय ख़त्म हो गयी, अब समय था परिणाम आने का


स्कूली जीवन में एक घटना अवश्य घटती है और वो ये की जो परीक्षा हम देकर आते है और हमें उम्मीद होती है की ये हमारी अच्छी गयी है उसी में अक्सर कम अंक आते है और जो बस चली ही जाती है ना अच्छी ना बुरी उसमे अंक अच्छे आते है, हमारे साथ भी भौतिक विज्ञानं के पेपर में ऐसा ही हुआ था, पहला पेपर अच्छा गया था और उसमे अंक कम आये किन्तु दूसरा अच्छा नही गया था तो उसमे अधिक अंक आये हमारी सोच से भी बढकर

तो इसी तरह परिणाम के साथ साथ हमारा और हमारे दोस्तों का स्कूली जीवन ख़त्म हुआ, अब समय था कॉलेज में दाखिला लेने का या फिर किसी और परीक्षा की तैयारी करने का जैसा की हमने संस्मरण में बताया था की बारहवीं के बाद हमने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया और भी अन्य कॉलेज के दाखिले की तैयारी की लेकिन अभाग्यवाश हम नाकाम रहे, हमारे कुछ दोस्त कोटा चले गए थे IIT की तैयारी करने


आखिर हमने कहा दाखिला लिया, और वहाँ का सफऱ हमारा केसा गुज़रा जानने के लिए जुड़े रहे हमरे साथ



स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिन 

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5 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:38 PM

Nice

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Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:29 PM

Nice

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